आगरा/लखनऊ, 19 सितम्बर।
भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथॉरिटी आफ़ताबे शरीअत मौलाना डॉ. कल्बे जवाद नक़वी के नेतृत्व में चल रहे वक्फ आंदोलन का पैग़ाम अब आगरा मंडल तक पहुँच चुका है। इस तहरीक को मज़बूती देने के लिए मौलाना इफ्तिखार हुसैन इंकलाबी आगरा पहुँचे और वहाँ सेव वक्फ इंडिया मिशन की मशाल जलाकर नई सरगर्मी पैदा की।
मौलाना इंकलाबी ने सबसे पहले मजार-ए-शहीद-ए-सालिस पर ज़ियारत की और दुआ की। इसके बाद उन्होंने डॉ. हादी हसन जाफ़री और सिब्ते हसन जाफ़री समेत शहर की कई नामवर हस्तियों और उलमा से मुलाक़ात की। इस मौके पर उन्होंने साफ़ कहा कि मुसलमानों की जिम्मेदारी है कि अपनी औक़ाफ़ को उम्मीद पोर्टल पर दर्ज कराएँ, ताकि कोई भी ताक़त उन्हें हड़प न सके।
सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फ़ैसले पर चिंता
मौलाना ने कहा कि मौलाना डॉ. कल्बे जवाद नक़वी की आवाज़ पूरी उम्मत-ए-मुस्लिम के दिलों की आवाज़ है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक्फ संशोधन कानून पर दिया गया अंतरिम फैसला संतोषजनक नहीं है और यह अदालत पर सरकार के दबाव को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि असली लड़ाई "वक्फ बाय यूज़र" की है, जिस पर अदालत ने खामोशी अख़्तियार की।
हुसैनाबाद ट्रस्ट की मिसाल और आगरा का सबक
मौलाना इंकलाबी ने आगाह किया कि अगर लखनऊ का हुसैनाबाद ट्रस्ट सरकारी कब्ज़े का शिकार हो सकता है, तो आगरा और पूरे देश की औक़ाफ़ भी इस खतरे से महफ़ूज़ नहीं। यही वजह है कि वक्फ की हिफ़ाज़त के लिए आंदोलन ज़रूरी है।
अवाम और उलमा की एकजुटता ही ताक़त
आगरा की इस अहम बैठक में उन्होंने कहा कि अगर अवाम और उलमा एकजुट हो जाएँ, तो सरकारों की चालें नाकाम हो जाती हैं। उन्होंने कहा:
"यह लड़ाई महज़ ज़मीनों की नहीं, बल्कि हमारी तहज़ीब और पहचान की लड़ाई है। अगर बांग्लादेश और नेपाल में अवाम के इंक़लाब से सरकारें बदल सकती हैं, तो हिंदुस्तान में भी औक़ाफ़ की हिफ़ाज़त के लिए ऐसा होना नामुमकिन नहीं।"
آگرہ میں گونجی آفتابِ شریعت کی تحریک کی صدا
’’سیو وقف انڈیا مشن‘‘ کی مشعل لے کر پہنچے مولانا افتخار حسین اِنقلابی، آگرہ کی شخصیات سے ملاقات کر وقف تحریک کو دی نئی سمت
آگرہ/لکھنؤ، 19 ستمبر۔
ہندوستان کی سپریم ریلیجس اتھارٹی آفتابِ شریعت مولانا ڈاکٹر کلبِ جواد نقوی کی قیادت میں جاری وقف تحریک کا پیغام اب آگرہ منڈل تک پہنچ چکا ہے۔ اس تحریک کو تقویت دینے کے لیے مولانا افتخار حسین اِنقلابی آگرہ پہنچے اور وہاں ’’سیو وقف انڈیا مشن‘‘ کی مشعل روشن کر کے ایک نئی بیداری کی لہر دوڑائی۔
مولانا اِنقلابی نے سب سے پہلے مزارِ شہیدِ ثالث پر حاضری دے کر دعا کی۔ اس کے بعد اُنہوں نے ڈاکٹر ہادی حسن جعفری اور سبطِ حسن جعفری سمیت شہر کی معزز شخصیات اور علما سے ملاقات کی۔ اس موقع پر اُنہوں نے زور دیا کہ مسلمانوں پر لازم ہے کہ اپنی اوقاف کو امید پورٹل پر درج کرائیں تاکہ کوئی طاقت اُنہیں غصب نہ کر سکے۔
سپریم کورٹ کے عبوری فیصلے پر تشویش
مولانا نے کہا کہ مولانا ڈاکٹر کلبِ جواد نقوی کی آواز دراصل پوری ملتِ اسلامیہ کے دلوں کی آواز ہے۔ سپریم کورٹ کی جانب سے وقف ترمیمی قانون پر دیا گیا عبوری فیصلہ اطمینان بخش نہیں اور یہ عدالت پر حکومت کے دباؤ کی عکاسی کرتا ہے۔ سب سے اہم مسئلہ ’’وقف بائے یوزر‘‘ کا تھا، جس پر عدالت نے خاموشی اختیار کی۔
حسین آباد ٹرسٹ کی مثال اور آگرہ کے لیے پیغام
مولانا اِنقلابی نے کہا کہ اگر لکھنؤ کا حسین آباد ٹرسٹ حکومتی قبضے کا شکار ہو سکتا ہے تو آگرہ سمیت پورے ملک کی اوقاف بھی محفوظ نہیں رہ سکتیں۔ یہی وجہ ہے کہ وقف کے تحفظ کے لیے ایک منظم تحریک ناگزیر ہے۔
عوام اور علما کا اتحاد ہی اصل طاقت
آگرہ کی اس اہم نشست میں اُنہوں نے کہا کہ جب عوام اور علما ایک پلیٹ فارم پر متحد ہو جاتے ہیں تو حکومتوں کی سازشیں خاک میں مل جاتی ہیں۔ اُنہوں نے کہا:
"یہ لڑائی محض زمینوں کی نہیں بلکہ ہماری تہذیب اور شناخت کی لڑائی ہے۔ اگر بنگلہ دیش اور نیپال میں عوامی انقلاب سے حکومتیں بدل سکتی ہیں تو ہندوستان میں بھی اوقاف کے تحفظ کے لیے ایسا ہونا ناممکن نہیں۔"
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