बाराबंकी, 20 सफर 1447 हिजरी (15 अगस्त 2025, जुमा) –
सुबह का आसमान तिरंगे की शोभा से चमक रहा था, गली-गली में “भारत माता की जय” की सदाएं गूंज रही थीं, और कुछ ही घंटों बाद वही सड़कों पर “या हुसैन” की पुकार छा गई।
बाराबंकी ने इस दिन एक साथ दो रंग देखे – आज़ादी की रौनक और कर्बला के ग़म की तासीर।
करबला सिविल लाइंस – अश्कों का सैलाब
झंडा रोहन के बाद करबला सिविल लाइंस में अकीदतमंद जमा हो गए,मजलिस मातम के बीच जब नौहा “भैया तेरे चहलूम के लिए आई है ज़ैनब” गूंजा, तो वहां मौजूद हर आंख नम हो गई। मातमी अंजुमन सीना-ज़नी करते हुए ग़म-ए-हुसैन का इज़हार कर रही थीं।
बच्चों, बुज़ुर्गों और औरतों – सभी की आंखों में बस एक ही मंज़र था: कर्बला का मंजर।
मजलिस – जहां लफ़्ज़ भी रो पड़े
मजलिस में उलमा-ए-किराम ने इमाम हुसैन अ.स. की कुर्बानियों, कर्बला के पैग़ाम और ज़ियारत-ए-अरबईन की अहमियत को इतने असरदार अंदाज़ में बयान किया कि पूरा मैदान सिसकियों से भर गया।
ग़म में डूबे अकीदतमंदों के लिए यह पैग़ाम भी दिया गया:
"करबला इराक नहीं जा पाए आज़ादार अरबईन के इस मौके पर तिरंगे के साथ बाराबंकी की करबला, सिविल लाइंस पहुंचे यहां हज़रत फातिमा ज़हरा (स) अपने लाल हुसैन (अ) पर पुरसा देने वालों का इंतज़ार कर रही थी और इमाम-ए-जमाना (अफ़.) भी आपकी राह तक रहे हैं।”
मौलाना तक़ी रज़ा का दिल छू लेने वाला खिताब
मौलाना सैय्यद तक़ी रज़ा साहब क़िब्ला ने कहा:
"आपस में झगड़े-लड़ाई न करो, नहीं तो वकार मजरूह हो जाएगा।
नज़रअंदाज़ न करोगे तो जिंदगी जी नहीं पाओगे।
दुनिया गरीब कहे तो परवाह न करो, आख़िरत में रईस बनो।
हुसैन को याद करने वालों, हुसैन की बात भी मानो।”
ये जुमले सुनकर मजलिस में खामोशी छा गई — मानो हर कोई अपने दिल में कुछ सोच रहा हो।
शहर में चेहल्लुम कार्यक्रम, जुमा की नमाज़ से पहले मुकम्मल
पहली मजलिस – सुबह 8:30 बजे, हुसैनिया अल्हाज सैयद शुजाअत हुसैन रिजवी करबलई, नगराम हाउस, अली कॉलोनी,लाइव देखिए
https://www.youtube.com/live/--0ioO3bEL8?si=v5uGNqOo13WgUN2M
दूसरी मजलिस – करबला सिविल लाइंस, – बाद में ज़ियारत-ए-अरबईन और मातम,
लाइव देखिए
https://www.youtube.com/live/XZrvT8cXBLw?si=5LMWGJrsANsnoRMC
तीसरी मजलिस – हुसैनिया कफील हैदर साहब, अली कॉलोनी, लाइव देखने के लिए क्लिक करे https://www.youtube.com/live/C3dq0-wHnMs?si=Vfb_tyYaW7VNaAjR
वक्फ नवाब अमजद अली खान हुसैनिया, बेगमगंज, बाराबंकी की मजलिस को लाइव देखने के लिए क्लिक करे
https://www.youtube.com/live/CnZ89G95Yik?si=UF6R0FfpbbWVFdJo
को भी मौलाना सैय्यद तक़ी रज़ा साहब क़िब्ला ने खिताब किया ये मजलिसे अंजुमन पैग़ाम-ए-कर्बला, बाराबंकी के तत्वाधान में हुई।सारे कार्यक्रम जुमा की नमाज़ से पहले ख़त्म कर दिए गए ताकि अकीदतमंद दोनों बरकतों से महरूम न रहें।
ज़ैदपुर – बड़ी सरकार से जुलूस-ए-अरबईन
दोपहर 12:30 बजे ज़ैदपुर के बाड़ी सरकार से जुलूस-ए-अरबईन निकला।
अलम, ताबूत, ज़ुलजनाह, मातमी अंजुमनों की कतारें – हर तरफ नौहों की गूंज और मातम का मंजर।
यहां मौलाना फ़ज़ल-ए-मुमताज़ साहब क़िब्ला ने मजलिस को खिताब किया ,अंजुमन ग़ुलाम-ए-असकरी, बाराबंकी और मुकामी अंजुमनों ने नवहा ख्वानी की,इस जुलूस के इंतीज़िमात डॉक्टर अली मुस्तफ़ा रिज़वी
ने किया था।
इसका लाइव देखने के लिए क्लिक करे।
https://www.youtube.com/live/DOa45p7CdFM?si=B-kn-5ltrDvhw_qP
फतेहपुर और आस-पास के कस्बे – हर गली में ग़म की लहर
चेहल्लुम के मौक़े पर फतेहपुर में भी जुलूस निकला, जिसमें बड़ी संख्या में आज़ादार शामिल हुए। नौहा-ख्वानी और मातम से गलियां गूंज उठीं।
इसी तरह आलमपुर, असंद्रा, मोतिकपुर, चंदवारा, किन्तूर और बदोसराय में भी मातमी जुलूस निकाले गए।
लाइव देखिए
https://www.youtube.com/live/E6HevpN7qlE?si=4R-5yfrwtEJZyMeb
https://www.youtube.com/live/RyXage2P0Gk?si=FRFglfFbQnzfZ_wH
https://www.youtube.com/live/cAG8J-KFuWM?si=qQnCUlxqI80j3mWV
https://www.youtube.com/live/wcsrkOB-CM4?si=7zPdwzBbTXuYo70E
किन्तूर – पानी भी न रोक सका हुसैनी जज़्बा
किन्तूर में रास्ते में भरे गंदे पानी और कीचड़ के बावजूद ताजियों का काफ़िला “या हुसैन” की सदाओं के बीच आगे बढ़ता रहा।
लोगों का कहना था कि यहां का प्रधान मुस्लिम है और उसकी लापरवाही चर्चा में थी, लेकिन आज़दारों का सब्र उस जुल्म और गंदगी पर भारी पड़ा।
दिल में तड़प और हुसैनी मोहब्बत लिए, नौहों की सदा में डूबा यह जुलूस निकला तो सुन्नी समुदाय की अकीदत भी परवान चढ़ती नज़र आई – गंगा-जमुनी तहज़ीब की एक मिसाल बनकर।
गंगा-जमुनी तहज़ीब – मोहब्बत की मिसाल
बाराबंकी ने फिर साबित किया कि यहां मोहब्बत और भाईचारा सबसे ऊपर है।
सुबह तिरंगे के साये में आज़ादी का प्रोग्राम और उसके बाद मजलिस और हुसैनी जुलूस – यही इस मिट्टी की असली पहचान है।
ये दिन आज़ादारों के लिए सिर्फ़ एक तारीख नहीं, बल्कि इमाम हुसैन अ.स. की याद और पैग़ाम को जीने का दिन बन गया।
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