बाराबंकी | 04 जुलाई 2025 | सातवीं मोहर्रम की रात जब इंसानियत पर ज़ुल्म का साया गहराने लगे, तो कर्बला का पैग़ाम हर दौर में उम्मीद की रौशनी बनकर उभरता है। ऐसी ही रौशनी आज बाराबंकी की फ़िज़ा में उस वक्त फैली जब सातवीं मोहर्रम की दोपहर फजलुर्रहमान पार्क से उठने वाला ऐतिहासिक अलम का जुलूस शहर की सड़कों से होता हुआ बेगमगंज की सुन्नी कर्बला पहुँचा। मगरिब की नमाज़ के बाद जुलूस पुनः रवाना हुआ और बेगमगंज, निबलेट चौराहा, धनोखर चौराहा, घंटाघर पुलिस चौकी होते हुए रात के अंतिम पहर में फजलुर्रहमान पार्क में परवाज़ हुआ।
*✨ भाईचारे की रौशनी में झिलमिलाया बेगमगंज चौराहा*
जुलूस के दौरान जब काफ़िला बेगमगंज चौराहे पर पहुँचा, तो वहां का मंजर देखने लायक था।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व पूर्व कैबिनेट मंत्री अरविंद कुमार सिंह गोप स्वयं हुसैनी लश्कर में शामिल होकर हिन्दू-मुस्लिम एकता, तहज़ीब और इंसानियत का ऐलान कर रहे थे। उन्होंने हज़रत इमाम हुसैन अ.स. और कर्बला में शहीद बहत्तर कारवां के नाम खिराज-ए-अकीदत पेश किया और कहा:
> "हुसैन किसी एक फिरके, किसी एक कौम के नहीं, वो पूरी इंसानियत के लिए रोशनी का चिराग़ हैं।"
*🏴 हुसैनी लश्कर बना सबक़-ए-इंसानियत*
बाराबंकी की सड़कों पर जब ‘लब्बैक या हुसैन’ की सदाएं गूंजीं, तो हर तरफ़ रूहानी सुकून छा गया। छोटे-बड़े सैकड़ों अलम, ढोल-नगाड़ों की ताल, ऊंटों की सवारी और कंधों पर उठे गमज़दा परचम इस बात की तस्दीक कर रहे थे कि कर्बला आज भी जिन्दा है, और हुसैनी काफ़िला कभी रुकेगा नहीं।
हज़ारों की भीड़, लेकिन शांति और अनुशासन का अद्भुत संगम — यही बाराबंकी की असल पहचान बनी।
🍛 लंगर-ओ-सबील: भूख और प्यास मिटाने की मोहब्बत भरी मिसाल
जहां-जहां जुलूस पहुँचा, वहां-वहां हुसैनी अकीदतमंदों ने लंगर और सबीलों के ज़रिये भूखों और प्यासों की खिदमत की। कहीं शरबत, कहीं तहरी, कहीं पानी और कहीं फल — हर चीज़ इंसानियत की नींव को मज़बूत करने का पैग़ाम बन गई।
🤝 मोहर्रम कमेटी अहले सुन्नत की क़ाबिले तारीफ़ पेशकश
इस भव्य जुलूस की सलीकेदार सदारत की मोहर्रम कमेटी अहले सुन्नत के अध्यक्ष ताज बाबा राईन और उनकी पूरी टीम ने।
जुलूस के दौरान पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप का कमेटी द्वारा वारसी चादर से इस्तकबाल किया गया। कमेटी ने उन्हें इस ऐतिहासिक अलम की रिवायत और इसके सामाजिक महत्व से भी अवगत कराया।
🌃 एक जुलूस जो पूरी रात शहर को जगाता रहा...
यह कोई साधारण रैली नहीं, बल्कि एक रूहानी सफ़र था।
जुलूस पूरी रात शहर की गलियों, चौराहों और मोहल्लों में चलता रहा।
हर नुक्कड़ पर मातम, हर दिल में सोज़, और हर आंख में अश्क...
बाराबंकी का यह मंजर शायद ही कोई भूल पाए।
बाराबंकी की सातवीं मोहर्रम की ये रात सिर्फ अज़ादारी की नहीं, बल्कि संवेदनाओं, अख़लाक़, इंसानियत, और सामाजिक सौहार्द की वो मिसाल बन गई जो हर साल इतिहास के पन्नों में दर्ज होती जा रही है।
हुसैन अ.स. की कुर्बानी हर दिल में जिंदा है, और यही जुलूस इस जिंदा इंसानियत का सबूत है।
🕊️ पैग़ाम: "हुसैनियत जिंदा है और जिंदा रहेगी, क्योंकि यह सिर्फ माज़ी नहीं, बल्कि मुस्तक़बिल का रास्ता है।"
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