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"तुम अकेले नहीं हो या हुसैन!" — असंद्रा की सरज़मीन पर दिखा हुसैनी मंजर, लंगर, मातम और मोहब्बत का बेपनाह सैलाब, पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप के साथ हज़ारों हिंदुओं ने पेश की सलामी



असंद्रा (बाराबंकी) | 03 जुलाई 2025 ,मोहर्रम की सातवीं तारीख़ पर बाराबंकी की तहसील हैदरगढ़ के गांव असंद्रा में जो मंज़र सामने आया, वो सिर्फ एक मज़हबी रस्म नहीं, बल्कि इंसानियत की सबसे ऊँची तस्वीर थी। अलम, जुलूस, नज़्र-ओ-नियाज़, लंगर और मातम — इन सबके बीच जब हज़ारों की तादाद में हिन्दू भाइयों ने भी एकजुट होकर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को सलामी पेश की, तो मानो कर्बला का पैग़ाम एक बार फिर ज़िंदा हो गया — "तुम अकेले नहीं हो या हुसैन!"

इस अलौकिक माहौल में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और पूर्व कैबिनेट मंत्री अरविंद सिंह गोप भी शामिल हुए। उन्होंने अकीदतमंदों के साथ लंगर में शिरकत की, अज़ादारों से मुलाकात की और हज़रत इमाम हुसैन की कुर्बानी को सलाम करते हुए कहा: "हुसैन मज़हब से ऊपर हैं। वो हर उस इंसान की आवाज़ हैं जो जुल्म के सामने खड़ा होता है। असंद्रा में यह नज़ारा सिर्फ अज़ादारी नहीं, बल्कि मोहब्बत और इंसाफ़ का जुलूस है।"

हिंदू-मुस्लिम एकता की सबसे रौशन मिसाल

गांव असंद्रा के गली-कूचों से लेकर दरवाज़ों तक, "या हुसैन या हुसैन" की सदाएँ गूंज रही थीं। लेकिन इस बार ये सदाएँ सिर्फ मुसलमानों की नहीं थीं। गांव के हज़ारों हिन्दू भाइयों ने भी कंधे से कंधा मिलाकर लंगर में हिस्सा लिया, जुलूस के साथ चले और इमामे मजलूम को अश्कों भरा सलाम पेश किया।

पंडित प्रेम प्रकाश ‘पंचम’ ने कहा:

"हम बरसों से इस लंगर में शामिल होते आए हैं। हुसैन सिर्फ मुसलमानों के नहीं, सबके हैं। उनकी कुर्बानी ने हमें यह सिखाया कि ज़ुल्म के आगे झुकना नहीं है।"

अकीदत, मातम और मोहब्बत का संगम

इस मौके पर मजलिस, मर्सिया, नौहा, और फिर लंगर का भरपूर इंतेज़ाम किया गया था। छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, हिन्दू-मुसलमान, सबने एक साथ बैठकर खाना खाया, कर्बला के भूखे-प्यासे शहीदों को याद किया और मातम करके अपना दर्द और मोहब्बत पेश की।

लंगर का इंतेज़ाम पूर्व प्रधान अकील अहमद जैदी के नेतृत्व में किया गया, जिन्होंने कहा:"यह कारवां मोहब्बत और इंसानियत का है, जो हुसैन की याद में हर साल बढ़ता ही जा रहा है।"

इस मौके पर मोहम्मद शकील,मोहम्मद शमीम,कफील अहमद जैदी, अम्मार यासिर,
नफीस अहमद जैदी,शौजब जैदी,नबील जैदी,सानू मियां (विधानसभा अध्यक्ष),रेहान एडवोकेट,प्रेम प्रकाश अग्निहोत्री ‘पंचम’,दिवाकर सिंह
अजय वर्मा ‘अज्जी’,हशमत अली गुड्डू,कपिल सिंह,और सैकड़ों समाजसेवी, ग्रामीण व युवा

असंद्रा में इस साल का मोहर्रम सिर्फ मजलिस या लंगर का आयोजन नहीं था, यह एक हुसैनी इंकलाब था, जिसमें धर्म, जात, वर्ग की दीवारें मिट गईं और हर ज़ुबान से बस यही निकला —
"तुम अकेले नहीं हो या हुसैन!"

रिपोर्ट: हसनैन मुस्तफा

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