तहलका टुडे डेस्क
लखनऊ,हर साल की तरह इस बार भी 8 मोहर्रम के मौके पर अलम-ए-फातेह-ए-फ़ुरात की याद में कल्बे जवाद फैंस एसोसिएशन द्वारा सबील का शानदार और मार्मिक आयोजन किया गया। यह सबील अब एक परंपरा से कहीं बढ़कर बन चुकी है—इंसानियत, सेवा और शहादत की गवाही देती हुई एक जीती-जागती मिसाल, जो पिछले 15 वर्षों से निरंतर जारी है।
इस मौके पर बड़ी तादाद में अकीदतमंदों ने सबील से सेराब होकर अपने दिलों को करबला के ताजगीभरे एहसास से रौशन किया। तपती दोपहरी और प्यासे लबों के बीच सबील से मिलने वाला ठंडा पानी मानो मौला अब्बास की मश्क की तर्जुमानी कर रहा था।
इस आयोजन में कल्बे जवाद फैंस एसोसिएशन के फाउंडर असद मेंहदी (सैफी) और जाफर मेंहदी (कैफ़ी) ने मेहमानों का इस्तक़बाल करते हुए कहा कि यह सबील महज़ एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि मज़लूमियत, खिदमत और आपसी मोहब्बत का पैग़ाम है।
मौके पर मौजूद रहे सामाजिक कार्यकर्ता समर मेंहदी, शिक्षाविद् मास्टर साहब, नौजवान अकीदतमंद मोहसिन, कौनैन रिज़वी, सैफ रिज़वी ने भी मिलकर सबील में खिदमत अंजाम दी।
राजनीतिक और सामाजिक बिरादरी से भी लोग इस आयोजन में शरीक हुए—
समाजवादी यूजन सभा के प्रतिनिधि नकी हैदर नदीम,
आम आदमी पार्टी बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष मोहम्मद तकी,
और अद्भुत उदाहरण पेश करते हुए हुसैनी ब्राह्मण सुमन मिश्रा जी ने भी अपने अकीदे और इंसानियत का परिचय दिया।
इस मौके पर बोलते हुए असद मेंहदी ने कहा:
"हमारी सबील सिर्फ पानी की नहीं, ये मोहब्बत और इंसानियत की सबील है। हर साल मजीद शिद्दत से इसको करने की कोशिश करते हैं ताकि लोगों को हज़रत अब्बास अ. की याद ताज़ा हो सके।"
15 साल से चल रही यह परंपरा अब लोगों के दिलों में घर कर चुकी है। यह सबील केवल करबला की याद नहीं दिलाती, बल्कि आज के समाज को सिखाती है कि इंसानियत, सेवा और दर्दमंदी ही असल इबादत है।
या हुसैन... या अब्बास... या सकीना...
हर सदा, हर कतरा, हर दिल में इस सबील की बरकतें झलक रही थीं।
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