लखनऊ | लखनऊ के चौक क्षेत्र के पीर बुखारा में वाक़े अज़ाख़ाना नेअमतुर्रब, जो इजहार आब्दी के घर पर वाक़े है, इस साल भी मोहर्रम की गहराइयों को महसूस करने वाला एक अद्भुत मंज़र बना। यहां हुई सालाना मजलिस-ए-अज़ा ने इमामे मजलूम हज़रत इमाम हुसैन अ.स. और उनके नन्हे लाड़ले हज़रत अली असगर अ.स. की शहादत की यादों को इस तरह ताज़ा किया कि अज़ाख़ाना ग़म, सब्र और हुसैनी सोज़ में डूब गया।
🎤 मौलाना मोहम्मद मियां आब्दी का रूह को झकझोर देने वाला ख़िताब
ईरान से आए मशहूर आलिम-ए-दीन हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैय्यद मोहम्मद मियां आब्दी साहब क़िबला ने अपने दिल को छू लेने वाले अंदाज़ में जब कर्बला की हकीकत और इमाम हुसैन अ.स. की कुर्बानी को बयान किया तो ऐसा लगा मानो सुनने वालों के दिलों पर अल्फ़ाज़ उतर रहे हों। उन्होंने कहा:
"हुसैन कोई शख्स नहीं, हुसैन एक नजरिया है — जो हर दौर के यज़ीद के सामने सिर झुकाने से इनकार करता है।"
उन्होंने बताया कि करबला में इमाम हुसैन अ.स. ने ज़ुल्म के आगे झुकने से इनकार कर दिया, और उनके लफ्ज़ नहीं, लहू बोलता रहा। लेकिन जब बात उनके नन्हे बेटे अली असगर अ.स. की आई, तो खुद बयान करने वाले मौलाना की भी आवाज़ भर आई।
💔 हज़रत अली असगर अ.स. की शहादत का मंजर और अज़ाख़ाना में फैला मातम
मजलिस का सबसे ज़ख्मी और मार्मिक हिस्सा वो था, जब मौलाना मोहम्मद मियां आब्दी ने हज़रत अली असगर अ.स. की शहादत का ज़िक्र किया। उन्होंने बताया कि:
"छह महीने का वो मासूम जब तीन दिन की प्यास के बाद अपने बाबा की की गोद में आकर सिर्फ एक क़तरा पानी के लिए सूखे होठों पर ज़बान फेरी थी, तो जवाब में तीर मिला — और वो तीर मासूम के गले में उतर गया।"
इस बयान के साथ ही माहौल ऐसा अश्कबार हुआ कि अज़ाख़ाना में मौजूद हर शख्स फूट-फूटकर रो पड़ा। अली असगर अ.स. की मां की चीख़, इमाम हुसैन अ.स. की खामोश आंखें और ज़मीन पर गिरता लहू — सबको महसूस हुआ।
"या अली असगर!" की सदाओं से फिजा थर्रा उठी।
🕯 कर्बला सिर्फ इतिहास नहीं, आज की इंसानियत का आईना है
मौलाना साहब ने ज़ोर देकर कहा कि आज भी ज़रूरत है कि हम करबला से सबक लें। जब इंसान बेज़बान हो जाए, जब ज़मीर सो जाए, तब हुसैनी सोच ज़िंदा होती है।
"हुसैन ने जंग नहीं की थी, उन्होंने इंसानियत को ज़िंदा रखा था। और 6 माह के हजरत अली असगर अ.स. की शहादत ने बता दिया कि सच्चाई के लिए जान कुर्बान करने की उम्र नहीं देखी जाती।"
📜 शोअरा की पेशख़्वानी और अज़ादारी का रूहानी माहौल
मजलिस में शामिल होने वाले शोअरा-ए-किराम — जनाब अहमद सज्जाद, क़मर इमाम, अन्जार सीतापुरी, एहसान सज्जाद और असद नसीराबादी साहब — ने अपने अशआर के ज़रिए करबला के हर किरदार को जिंदा कर दिया। उनके कलाम में ताजगी थी, सोज़ था और एहसास था।
🙏 आयोजक इजहार आब्दी साहब की तरफ से शुक्रिया
इस दर्दभरी लेकिन रुहानी मजलिस के इंतज़ामात की जिम्मेदारी बख़ूबी निभाई जनाब इजहार आब्दी साहब ने। उन्होंने न सिर्फ मजलिस की ताज़ीम में हर पहलू का ध्यान रखा, बल्कि अपनी मुख्लिसाना और हुसैनी जज़्बे से इसे एक यादगार मजलिस में तब्दील कर दिया।
जनाब इजहार आब्दी ने तमाम हज़रात और ख़्वातीन का दिल से शुक्रिया अदा किया जिन्होंने मजलिस में शिरकत की और इसे एक सच्चे हुसैनी एहसास से भर दिया।
📺 सीधा प्रसारण:
HUSAINI Channel पर मजलिस को लाइव प्रसारित किया गया, जिससे देश-विदेश में बैठे अज़ादारों ने भी इसकी बरकत पाई।
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✍️ रिपोर्ट: हसनैन मुस्तफा
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