लखनऊ,शहर की भीड़भाड़ और दुनियावी दौड़ के बीच, सीतापुर रोड स्थित गौसिया मस्जिद, ब्रह्म नगर से एक ऐसी रूहानी कहानी सामने आई है जिसने कई दिलों को झकझोर दिया और यह एहसास कराया कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, बस नीयत सच्ची होनी चाहिए।
🌙 शुरुआत एक एहसास से हुई...
एक दिन मस्जिद में नमाज़ के दौरान कुछ उम्रदराज़ लोगों को देखा गया। देखने वाले के दिल में ख्याल आया — “क्या ये लोग सही तरीके से नमाज़ अदा कर पाते होंगे? क्या इन्हें कुरान शरीफ पढ़ना आता होगा?”
दिल में झिझक थी कि कहीं पूछने पर उन्हें बुरा न लगे, मगर अल्लाह का नाम लेकर हिम्मत की गई।
अकेले में बात हुई तो जवाब ने दिल को छू लिया —
“न तो मुझे नमाज़ अदा करना आता है, और न ही कुरान शरीफ पढ़ना।”
यह सुनकर मन में दर्द तो हुआ, लेकिन साथ ही एक नई सोच भी जगी —
क्यों न ऐसे लोगों के लिए रात में तालीम का इंतज़ाम किया जाए ताकि वे भी अपने रब की किताब को पढ़ सकें और नमाज़ को सही तरीके से अदा कर सकें।
🕌 इमाम अब्दुल वारिस साहब का जज़्बा
जब यह बात मस्जिद के इमाम जनाब अब्दुल वारिस साहब से की गई — जो खुद ईशा के बाद घर-घर जाकर पढ़ाते थे — तो उन्होंने बिना किसी झिझक के इस नेक काम के लिए हामी भर दी।
इस तरह, रात के वक्त मदरसे की शुरुआत सिर्फ दो नौजवानों से हुई।
धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता गया —
कोई ए.सी. मैकेनिक, कोई इलेक्ट्रिशियन, और कोई कार रिपेयरिंग का माहिर कारीगर अपनी रोज़ी-रोटी के बाद मस्जिद में कुरान सीखने आने लगा।
ग़ुस्ल, वुज़ू और नमाज़ से कुरान तक
इमाम साहब ने सबसे पहले ग़ुस्ल का तरीका, वुज़ू के आदाब और नमाज़ की बुनियादी जानकारी सिखाई।
फिर अरबी की तालीम शुरू की।
अल्लाह के फज़ल से मेहनत रंग लाई —
बबलू भाई, जो पेशे से ए.सी. मैकेनिक हैं,
ने अपने व्यस्त सीजन में भी वक़्त निकालकर पूरा कुरान मुकम्मल किया।
उनकी इस कामयाबी पर एक छोटा सा जलसा रखा गया।
इमाम अब्दुल वारिस साहब को शॉल पहनाकर सम्मानित किया गया,
और बबलू भाई को उनकी मेहनत के लिए तोहफा दिया गया।
🌟 आज का गौसिया मदरसा — दो तालीमें, एक मिशन
आज मदरसा गौसिया दो अलग-अलग समय में तालीम का मरकज़ बन चुका है.
दिन में छोटे बच्चों को बुनियादी दीनी तालीम दी जाती है।
रात में उम्रदराज़ लोगों को कुरान शरीफ और नमाज़ की तालीम दी जाती है।
इसके अलावा, हर नमाज़ के बाद कुरान का दरस दिया जाता है,
जिसमें इलाक़े के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
💚 सबील-ए-अल्लाह की मिसाल
इस तालीमी सिलसिले की सबसे खूबसूरत बात यह है कि
इसमें आने वाला सारा खर्चा सबील-ए-अल्लाह है।
न मस्जिद कमेटी से कोई मदद ली जाती है,
न किसी बंदे से आर्थिक सहायता।
यह काम खालिस अल्लाह की रज़ा के लिए किया जा रहा है।
🌺 नेक नीयत की बरकत
एक सवाल, एक हिम्मत, और एक नेक इरादा —
इन्हीं तीन चीज़ों ने आज इस मोहल्ले की रूह को जगा दिया।
जहाँ पहले लोग झिझकते थे, वहीं अब
कुरान की आवाज़ें, नमाज़ की पाबंदी, और ईमान की रोशनी बिखरी नज़र आती है।
“जब नीयत साफ़ हो, तो अल्लाह तालीम का रास्ता खुद आसान कर देता है।”
🤲 दुआ
अल्लाह तआला से दुआ है कि
गौसिया मस्जिद, ब्रह्म नगर, सीतापुर रोड की इस रौशन पहल में
बरकत और रहमत नाज़िल फरमाए,
इमाम अब्दुल वारिस साहब को स्वास्थ्य, दीर्घायु और इल्म में इज़ाफ़ा अता करे,
और ऐसे नेक कामों का सिलसिला हमेशा जारी रखे।
पूर्व रजिस्ट्रार, हाई कोर्ट, लखनऊ
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