तहलका टुडे टीम
आलमपुर, बाराबंकी: 25 अगस्त 2025 को जब “या हुसैन” की सदाएँ गूंज रही थीं और 72 ताबूत का जुलूस-ए-आमरी पूरे शहर में निकला, उसी समय नौबेलरे सोसायटी ने इंसानियत की नई मिसाल पेश की। इस अवसर पर सोसायटी ने अपना पहला स्वैच्छिक रक्तदान शिविर आयोजित किया, जिसका मक़सद था कैंसर, थैलेसीमिया और अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों को जीवनदायी रक्त उपलब्ध कराना।
नवजवानों का हुसैनी जज़्बा
इस शिविर में 20 से अधिक हुसैनी नवजवानों ने रक्तदान कर इंसानियत और हमदर्दी की मिसाल पेश की। उनके इस जज़्बे ने साबित कर दिया कि हुसैनियत सिर्फ़ मातम और यादों तक सीमित नहीं, बल्कि आज भी लोगों की ज़िंदगियों को बचाने में सक्रिय है।
सम्मान और पहचान
खून दान करने वाले हर शख़्स को ब्लड डोनर सर्टिफिकेट प्रदान कर उनके प्रयासों को सम्मानित किया गया। यह केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि उनके हुसैनी जज़्बे और इंसानियत की सेवा का प्रतीक है।
मुहिम को सफल बनाने में खिदमतगुज़ारों की भूमिका
मौलाना समीर आलमपुरी, मोहम्मद फ़रज़ान, अली मियां,समर मेहदी,अजमी मीरापुर, जामिन आलमपुरी, शिफात आलमपुरी और कई अन्य स्वयंसेवकों ने इस शिविर को सफल बनाने में अहम योगदान दिया। उनका मानना है कि हुसैनियत का असली संदेश यही है कि मज़लूम की मदद की जाए और इंसानियत की रक्षा की जाए।
नौबेलरे सोसायटी का विज़न
नौबेलरे सोसायटी का उद्देश्य केवल रक्तदान तक सीमित नहीं है। उनकी पहलें समाज के हर क्षेत्र में हैं:
- स्वास्थ्य और नियमित रक्तदान शिविर
- शिक्षा और गरीब बच्चों की सहायता
- महिला सशक्तिकरण
- पर्यावरण संरक्षण
- आपदा राहत कार्य
इंसानियत को सलाम
आज जब समाज में इंसान इंसान से दूर होता जा रहा है, यह पहल इंसानियत और हुसैनी जज़्बे की नई मिसाल बन गई। नवजवानों का यह रक्तदान केवल जीवन बचाने तक सीमित नहीं, बल्कि देश और समाज के लिए उम्मीद की नई किरण बन गया।
👉 या हुसैन की सदाओं के बीच बहा हुसैनी लहू आज मज़लूमों के लिए जीवन और समाज के लिए प्रेरणा बन गया।
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