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❗️मुनाफ़िक़ – छुपा हुआ ज़हर, इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन!✍️ "काफ़िर से डर नहीं लगता, मुनाफ़िक़ से लगता है... क्योंकि काफ़िर सामने होता है, मगर मुनाफ़िक़ दिल के अंदर!"

🔥 क़ौम को तोड़ने वाले चेहरे वो नहीं होते जो बाहर से हमला करते हैं, बल्कि वो होते हैं जो हमारी क़ौम की टोपी पहनकर हमारे ही बीच खंजर घोंपते हैं...

रसूलुल्लाह हज़रत मुहम्मद ﷺ का दौर जंगे-बदर और जंगे-उहुद जैसी घातक जंगों से भरा था। मगर सबसे कठिन लड़ाई वो थी जो उन्होंने "मुनाफ़िक़ों" से लड़ी — वो लोग जो मुसलमानों के कपड़े पहनते थे, नमाज़ों में खड़े होते थे, लेकिन उनके दिलों में इस्लाम के लिए नफरत और दुश्मनी छुपी होती थी।

रिपोर्ट:मोहम्मद वसीक


🧨 आज भी वही दुश्मन ज़िंदा है!

आज भी मुनाफ़िक़ इस्लाम की बुनियादों को हिला रहे हैं:

  • ये अपने आप को "मॉडर्न मुसलमान" कहते हैं, मगर कुरआन और सुन्नत का मज़ाक उड़ाते हैं।
  • ये इस्लामी पहनावे, पर्दा, हया और शरीअत को "पिछड़ापन" बताते हैं।
  • ये नमाज़ों की हिफ़ाज़त नहीं करते लेकिन "सेक्युलरिज़्म" के नाम पर इस्लाम को दबाते हैं।
  • ज़ुल्म के वक़्त ये चुप रहते हैं या ज़ालिमों का साथ देते हैं।

🧿 मुनाफ़िक़ कौन होता है? (इस्लामी पैमाना)

रसूल ﷺ ने फ़रमाया:

"मुनाफ़िक़ की तीन निशानियाँ हैं:
जब बोले तो झूठ बोले,
जब वादा करे तो तोड़े,
और जब अमानत दी जाए तो उसमें खयानत करे।"

(सहीह बुख़ारी व मुस्लिम)

मुनाफ़िक़ वो होता है जो:

  • अल्लाह की कसम झूठ पर खा जाए,
  • कौम को तोड़े,
  • अपने फायदे के लिए इस्लाम का इस्तेमाल करे।

🕋 मदीने में मस्जिद ज़रार – पहला "पॉलिटिकल ड्रामा"

मुनाफ़िक़ों ने पैग़म्बर ﷺ के वक़्त एक मस्जिद ही बनवा दी — "मस्जिद ज़रार", ताकि उसमें बैठकर साजिशें कर सकें।
क्या आज भी ऐसे लोग नहीं जो दीन के नाम पर NGO, इदारें और आंदोलन बनाते हैं, लेकिन असल मक़सद कौम को गुमराह करना होता है?


😢 आज की सबसे बड़ी त्रासदी:

हमने मुनाफ़िक़ों को पहचानना बंद कर दिया है।
हमने उनके साथ बैठना, उनके पीछे चलना, उनके जश्नों में शामिल होना शुरू कर दिया है।
हम उन लोगों को अपना रहनुमा मानने लगे हैं जो इस्लाम के दुश्मनों से तालमेल रखते हैं और मुसलमानों की आवाज़ को दबाते हैं।


⚔️ क्यों मुनाफ़िक़ सबसे बड़ा खतरा है?

  1. वो मुसलमान के चहरे में छुपा शैतान होता है।
  2. वो कौम के अंदर से कौम को काटता है।
  3. वो इस्लाम का मज़ाक बना कर अपनी "बुद्धिजीविता" साबित करता है।
  4. वो इस्लामी एकता को तोड़कर दुश्मनों के लिए रास्ता आसान करता है।

💥 कुरआन की चेतावनी:

"मुनाफ़िक़ लोग दोज़ख़ के सबसे निचले हिस्से में होंगे और तुम उनके लिए कोई मददगार न पाओगे।"
(सूरह अन-निसा: 145)

क्या आपको पता है? दोज़ख़ के सबसे नीचे का हिस्सा शैतानों और सबसे ख़तरनाक लोगों के लिए है — वहीं मुनाफ़िक़ों की जगह तय की गई है!


🔓 अब हमें क्या करना चाहिए?

अपनी नीयत साफ करें – कहीं हम भी दोहरी ज़िंदगी तो नहीं जी रहे?
अपने बच्चों को दीन की तालीम दें – ताकि वो फरेब में न आएं।
इस्लामी नेतृत्व और रहबरों को सही पैमाने पर परखें – जो इस्लाम पर चले, वही रहनुमा!
मीडिया और सोशल मीडिया पर मुनाफ़िक़ों की बातों से दूर रहें – ये शुबहात और शक पैदा करते हैं।


📢 समाज को एक सच्चा पैग़ाम दें:

❝ हमें काफ़िर से उतना डर नहीं, जितना मुनाफ़िक़ से डरना चाहिए, क्योंकि काफ़िर मैदान-ए-जंग में आता है, मुनाफ़िक़ तो मसनद पर बैठता है, मस्जिद में बैठता है, और वहाँ से वार करता है। ❞


💔 ख़त्म करते वक़्त बस एक सवाल:

क्या आज का मुसलमान इतना बेदार है कि वो मुनाफ़िक़ को पहचान सके?

अगर नहीं — तो समझो हमारा सबसे बड़ा दुश्मन, हमारी ही صف़ों में बैठा है... और हम उसे "रहनुमा", "बुद्धिजीवी" और "सेक्युलर मुसलमान" कहकर इज़्ज़त दे रहे हैं।


📿 दुआ करें:
ऐ अल्लाह! हमें मुनाफ़िक़ों की पहचान की आँख अता फ़रमा,
और उन्हें इस्लामी समाज से दूर रखने की ताक़त दे।
हमें साफ़दिल, सच्चे और एकरंगी मुसलमान बना दे।
आमीन या रब्बल आलमीन

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