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बाराबंकी की मिट्टी रोज पहुंचती है मक्का, मदीना और नज़फ करबला –“भारत की पाक सरज़मी का "कारवां-ए-विला" सितम्बर में ज़ियारत, अमन और इंसानियत के सफ़र के लिए रवाना”



 दुआ और अदब की सरज़मी बाराबंकी 

भारत वह मुल्क है जिसे अमन, मोहब्बत और गंगा-जमुनी तहज़ीब की सरज़मी कहा जाता है। यहां की मिट्टी दुआओं से महकती है और दिल मोहब्बत से धड़कते हैं। यही वह ज़मीन है जहां मंदिर की घंटियां और मस्जिद की अज़ानें मिलकर इंसानियत का गीत गाती हैं।

ख़ासकर बाराबंकी की सरज़मी हमेशा से दुआओं और रूहानियत की गवाही देती रही है। यहां का हर इंसान अपने वजूद में मोहब्बत और दुआ का पैग़ाम रखता है। यही वजह है कि जब बाराबंकी से कारवां-ए-विला मुक़द्दस मक़ामात की ओर रवाना होता है तो यह सफ़र सिर्फ़ इबादत का नहीं बल्कि पूरी इंसानियत की सलामती और भाईचारे का पैग़ाम बन जाता है।

उमरा और ज़ियारत की फ़ज़ीलत

उमरा और ज़ियारत का सफ़र इंसान के लिए सबसे बड़ा इनाम है। यह वह सफ़र है जो दिल को ताज़गी और रूह को नूर बख़्शता है।

रसूल-ए-खुदा (स.अ.व.) ने फ़रमाया:
“उमरा गुनाहों को ऐसे धो देता है जैसे आग सोने-चांदी के मैल को दूर कर देती है।”

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) ने ज़ियारत के बारे में कहा:
“हमारे क़ब्रों की ज़ियारत करना जन्नत की ओर सफ़र है।”

यानी उमरा और ज़ियारत न सिर्फ़ इंसान को अल्लाह के क़रीब ले जाते हैं बल्कि उसे गुनाहों से पाक कर देते हैं। हर ज़ायर जब मक्का में काबा का तवाफ करता है या करबला, नजफ़, मशहद और क़ुम के रोज़ों पर हाथ उठाता है, तो उसकी दुआ में न सिर्फ़ उसकी ज़रूरतें शामिल होती हैं बल्कि पूरी इंसानियत की सलामती भी होती है।

अजमी बाराबंकवी – खिदमत का सच्चा पैकर

बाराबंकी का नौजवान अजमी बाराबंकवी आज कारवां-ए-विला की रूह है। उसने अपनी खालिस नीयत और खिदमतगुज़ारी से हज़ारों लोगों को मुक़द्दस मक़ामात की ज़ियारत का शरफ़ दिलाया है।

उसकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि वह ज़ायरीन को सबसे कम ख़र्च में यह सफ़र मुहैया कराता है, ताकि कोई इंसान पैसों की वजह से महरूम न रह जाए। उसकी रहनुमाई में अब तक हज़ारों ज़ायरीन इस सफ़र का सुकून पा चुके हैं। और खुद अजमी भी सौवीं ज़ियारत की मंज़िल के क़रीब है — जो उसकी सच्चाई और खिदमत का इनाम है।

मौलाना तनवीर हुसैन साहब – रहनुमाई की रौशनी

इस कारवां को रूहानी नूर देने में मौलाना तनवीर हुसैन साहब का अहम किरदार है। उनकी रहनुमाई, उनकी दुआएं और उनकी तालीम ज़ायरीन को यह सिखाती हैं कि यह सफ़र सिर्फ़ इबादत का नहीं बल्कि इंसानियत और भाईचारे का भी सफ़र है।

कारवां-ए-विला – अमन और इंसानियत का पैग़ाम

सितंबर 2025 में कारवां-ए-विला का जत्था लखनऊ एयरपोर्ट से रवाना हुआ। यह कारवां 14 मासूमीन की ज़ियारत और उमरा के लिए जा रहा है। मगर इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यह जत्था पूरी दुनिया में अमन, भारत में भाईचारे और मज़लूमों की मदद का पैग़ाम लेकर जाता है।

महात्मा गांधी ने कहा था – “अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।”
और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने कहा – “भारत का असली हुस्न उसकी गंगा-जमुनी तहज़ीब में है।”
कारवां-ए-विला इन्हीं दोनों पैग़ामों का अमली रूप है – अमन, मोहब्बत और इंसानियत का कारवां।

भारत की दुआओं की तहज़ीब और अदब की सरज़मी

भारत की सरज़मी अदब, तहज़ीब और मोहब्बत का पैग़ाम लेकर दुनिया के सामने आती है। यहां हर घर से दुआ उठती है, हर दिल से मोहब्बत बहती है और हर जुबान से अमन की पुकार निकलती है।

जब बाराबंकी का ज़ायर मक्का में काबा या करबला में रोज़-ए-हुसैन (अ.स.) के सामने दुआ करता है तो उसमें भारत की पूरी तहज़ीब की झलक दिखाई देती है। यही भारत का असली नूर है


 – दुआ, मोहब्बत और इंसानियत।

यह कारवां सिर्फ़ एक सफ़र नहीं बल्कि भारत की रूह है, जो मुक़द्दस मक़ामात पर जाकर इंसानियत और अमन की पुकार करता है। यही वजह है कि कारवां-ए-विला का हर क़दम पूरी दुनिया के लिए रहमत, बरकत और दुआ का पैग़ाम है।

हसनैन मुस्तफा 

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